रोज़ आता है ये बहरूपिया, इक रूप बदलकर,
रात के वक़्त दिखाता है, 'कलाएं' अपनी,
और लुभा लेता है मासूम से लोगों को अदा से!
पूरा हरजाई है, गलियों से गुज़रता है, कभी
रोज़ आता है जगाता है, बहुत लोगों को शब्-भर!
आज की रात उफुक से कोई,
चाँद निकले तो गिरफ्तार ही कर लो!
No comments:
Post a Comment